सोमवार, 25 जनवरी 2016

प्रमुख वंश और उनके संस्थापक

हर्यक वंश का संस्थापक - बिम्बिसार
नन्द वंश का संस्थापक - महापदम नन्द
मौर्य साम्राज्य के संस्थापक - चन्द्रगुप्त मौर्य
गुप्त वंश के संस्थापक - श्री गुप्त श्रीगुप्त
पाल वंश के संस्थापक - गोपाल
पल्लव वंश के संस्थापक - सिंहविष्णु
राष्ट्रकूट वंश के संस्थापक - दन्तिदुर्ग
चालुक्य ( वातापी) वंश के संस्थापक - पुलकेशिन प्रथम
चालुक्य ( कल्याणी) वंश के संस्थापक - तैलप-द्वितीय
चोल वंश के संस्थापक - विजयालय
सेन वंश के संस्थापक - सामन्तसेन
राजपूत वंश के संस्थापक - अग्निकुल सिद्धांत
गुर्जर प्रतिहार वंश के संस्थापक - हरिश्चंद्र
चौहान वंश के संस्थापक - वासुदेव
परमार वंश के संस्थापक - भोज
चंदेल वंश के संस्थापक - नन्नुक
गुलाम वंश के संस्थापक - कुतुबुद्दीन ऐबक
ख़िलजी वंश के संस्थापक - जलालुद्दीन फिरोज ख़िलजी
तुगलक वंश के संस्थापक - गयासुद्दीन तुगलक
सैयद वंश का संस्थापक - खिज्र खान
लोदी वंश का संस्थापक - बहलोल लोदी
विजयनगर साम्राज्य की स्थापना - हरिहर एवं बुक्का
बहमनी साम्राज्य की स्थापना - हसन गंगू
मुगल वंश के संस्थापक - बाबर 

महत्व पूर्ण तथ्य

● भारत में कुल कितने उच्च न्यायालय हैं                                            — 24  
● भारत के किस उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की संख्या सबसे कम है    — सिक्किम उच्च न्यायालय 
● भारत के किस न्यायालय में न्यायाधीशों की संख्या सबसे अधिक है        — इलाहाबाद उच्च न्यायालय 
● भारत का सबसे बड़ा उच्च न्यायालय कौन-सा है                                —इलाहाबाद उच्च न्यायालय 
● पटना उच्च न्यायालय की स्थापना कब हुई                                       — 1916 ई. 
● मध्य प्रदेश का उच्च न्यायालय कहाँ स्थित है                                    — जबलपुर
● उच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार को हटाने या बढ़ाने का अधिकार किसको है— भारतीय संसद को
● उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति कौन करता है                        —राष्ट्रपति
● उच्च न्यायालय का न्यायाधीश कितनी आयु तक अपने पद पर रह सकता है — 65 वर्ष की आयु तक
● उच्च न्यायालय में प्रथम महिला मुख्य न्यायाधीश कौन थीं—श्रीमती लीला सेठ
● किसी न्यायाधीश को एक न्यायालय से दूसरे न्यायालय में भेजने का अधिकार किसको है— राष्ट्रपति को
● भारत का चलित न्यायालय किसका मानसंपुज है— डॉ. ए.पी.जे. कलाम आजाद
● किस उच्च न्यायालय में सबसे अधिक स्थाई/अस्थाई खंडपीठ है— गुवाहटी उच्च न्यायालय में
● केरल का उच्च न्यायालय कहाँ स्थित है— एर्नाकुलम
● उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को उसके पद व गोपनीयता की शपथ कौन दिलाता है— राज्यपाल
● संविधान के किस अनुच्छेद के अंतर्गत उच्च न्यायालय द्वारा दिया गया निर्देश परिवर्तित किया जा सकता है—अनुच्छेद-226
● ओड़िशा राज्य का उच्च न्यायालय कहाँ स्थित है— कटक
● किसी राज्य के उच्च न्यायालय के न्यायधीशों के वेतन एवं भत्ते का संबंध किससे होता है— संबंधित राज्य की लोकलेखा निधि से
● केंद्रशासित प्रदेश दिल्ली का उच्च न्यायालय कहाँ स्थित है— दिल्ली में
►►. वित्तीय संस्थाएं एवं स्थापना वर्ष ►►►
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►- पंजाब नेशनल बैंक                           - 1894 ई.
►-इम्पीरियल बैंक ऑफ इंडिया               -1921 ई.
►-भारतीय रिजर्व बैंक                           -1 अप्रैल 1935 ई.
►-भारतीय औद्योगिक वित्त निगम(IFCI)  - 1948 ई.
►-भारतीय औद्योगिक ऋण व निवेश नि.(ICICI) - 1955 ई.
►-भारतीय स्टेट बैंक (SBI)                    -1 जुलाई 1955 ई.
►-भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक (SIDBI)-1990 ई.
►-भारतीय निर्यात-आयात बैंक(EXIM BANK)-1 जनवरी, 1982 ई.
►-राष्ट्रीय आवास बैंक                            -जुलाई, 1988 ई.
►-भारतीय जीवन बीमा निगम(LIC)        -सितंबर, 1956 ई.
►-क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक                            -2 अक्टूबर, 1975 ई.
►-गृह विकास वित्त निगम लि.(HDFC)     -1977 ई.
प्रधानमंत्री द्वारा शुरू योजनाओं की सूची :
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➨ प्रधानमंत्री जन-धन योजना           - 28 अगस्त 2014
➨ डिजिटल इंडिया                         - 21 अगस्त 201
➨ मेक इन इण्डिया                        - 25 सितम्बर 2014
➨ स्वच्छ भारत मिसन - 2 अक्टूबर 2014
➨ सांसद आदर्श ग्राम योजना - 11 अक्टूबर 2014
➨ श्रमेव जयते - 16 अक्टूबर 201
➨ जीवन प्रमाण(पेंसन भोगियों के लिए) - 10 नवम्बर 2014
➨ मिसन इंद्र धनुष(टीकाकरण) - 25दिसम्बर 2014
➨ निति(NITI) आयोग - 1 जनवरी 2015
➨ पहल(प्रत्यक्ष हस्तांतरण) - 1 जनवरी 2015
➨ ह्रदय(समृध्दसांस्कृतिक विरासत संरक्षण व कायाकल्प) - 21जनवरी 2015
➨ बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ - 22 जनवरी 2015
➨ सुकन्या समृध्धि योजना - 22 जनवरी 2015
➨ मृदा स्वास्थ कार्ड - 19 फरवरी 2015
➨ प्रधानमंत्रीकौशल विकाश - 20 फरवरी 2015
➨ प्रधानमंत्रीजीवन ज्योति - 9 मई 2015
➨ प्रधानमंत्रीसुरक्षा बीमा - 9 मई 2015
➨ अटल पेंसन योजना~9 मई 2015
➨ उस्ताद(usttad)(अल्पसंख्यक कारीगर) - 14 मई 2015
➨ कायाकल्प(जन स्वास्थ) - 15 मई 2015
➨ डीडी किसान चैनल - 26मई 2015

रविवार, 24 जनवरी 2016

जैन धर्म - इतिहास की नजर में
दुनिया के सबसे प्राचीन धर्म जैन धर्म को श्रमणों का धर्म कहा जाता है। वेदों में प्रथम तीर्थंकर ऋषभनाथ का उल्लेख मिलता है। माना जाता है कि वैदिक साहित्य में जिन यतियों और व्रात्यों का उल्लेख मिलता है वे ब्राह्मण परंपरा के न होकर श्रमण परंपरा के ही थे। मनुस्मृति में लिच्छवि, नाथ, मल्ल आदि क्षत्रियों को व्रात्यों में गिना है।
जैन धर्म का मूल भारत की प्राचीन परंपराओं में रहा है। आर्यों के काल में ऋषभदेव और अरिष्टनेमि को लेकर जैन धर्म की परंपरा का वर्णन भी मिलता है। महाभारतकाल में इस धर्म के प्रमुख नेमिनाथ थे।
जैन धर्म के 22वें तीर्थंकर अरिष्ट नेमिनाथ भगवान कृष्ण के चचेरे भाई थे। जैन धर्म ने कृष्ण को उनके त्रैसष्ठ शलाका पुरुषों में शामिल किया है, जो बारह नारायणों में से एक है। ऐसी मान्यता है कि अगली चौबीसी में कृष्ण जैनियों के प्रथम तीर्थंकर होंगे।
ईपू आठवीं सदी में 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ हुए, जिनका जन्म काशी में हुआ था। काशी के पास ही 11वें तीर्थंकर श्रेयांसनाथ का जन्म भी हुआ था। इन्हीं के नाम पर सारनाथ का नाम प्रचलित है।
भगवान पार्श्वनाथ तक यह परंपरा कभी संगठित रूप में अस्तित्व में नहीं आई। पार्श्वनाथ से पार्श्वनाथ संप्रदाय की शुरुआत हुई और इस परंपरा को एक संगठित रूप मिला। भगवान महावीर पार्श्वनाथ संप्रदाय से ही थे।
जैन धर्म में श्रमण संप्रदाय का पहला संप्रदाय पार्श्वनाथ ने ही खड़ा किया था। ये श्रमण वैदिक परंपरा के विरुद्ध थे। यही से जैन धर्म ने अपना अगल अस्तित्व गढ़ना शुरू कर दिया था। महावीर तथा बुद्ध के काल में ये श्रमण कुछ बौद्ध तथा कुछ जैन हो गए। इन दोनों ने अलग-अलग अपनी शाखाएं बना ली।
ईपू 599 में अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर ने तीर्थंकरों के धर्म और परंपरा को सुव्यवस्थित रूप दिया। कैवल्य का राजपथ निर्मित किया। संघ-व्यवस्था का निर्माण किया:- मुनि, आर्यिका, श्रावक और श्राविका। यही उनका चतुर्विघ संघ कहलाया। भगवान महावीर ने 72 वर्ष की आयु में देह त्याग किया।
भगवान महावीर के काल में ही विदेहियों और श्रमणों की इस परंपरा का नाम जिन (जैन) पड़ा, अर्थात जो अपनी इंद्रियों को जीत लें।
धर्म पर मतभेद : अशोक के अभिलेखों से यह पता चलता है कि उनके समय में मगध में जैन धर्म का प्रचार था। लगभग इसी समय, मठों में बसने वाले जैन मुनियों में यह मतभेद शुरू हुआ कि तीर्थंकरों की मूर्तियां कपड़े पहनाकर रखी जाए या नग्न अवस्था में। इस बात पर भी मतभेद था कि जैन मुनियों को वस्त्र पहनना चाहिए या नहीं।
आगे चलकर यह मतभेद और भी बढ़ गया। ईसा की पहली सदी में आकर जैन धर्म को मानने वाले मुनि दो दलों में बंट गए। एक दल श्वेतांबर कहलाया, जिनके साधु सफेद वस्त्र (कपड़े) पहनते थे, और दूसरा दल दिगंबर कहलाया जिसके साधु नग्न (बिना कपड़े के) ही रहते थे।
श्वेतांबर और दिगंबर का परिचय : भगवान महावीर ने जैन धर्म की धारा को व्यवस्थित करने का कार्य किया, लेकिन उनके बाद जैन धर्म मूलत: दो संप्रदायों में विभक्त हो गया: श्वेतांबर और दिगंबर।
दोनों संप्रदायों में मतभेद दार्शनिक सिद्धांतों से ज्यादा चरित्र को लेकर है। दिगंबर आचरण पालन में अधिक कठोर हैं जबकि श्वेतांबर कुछ उदार हैं। श्वेतांबर संप्रदाय के मुनि श्वेत वस्त्र पहनते हैं जबकि दिगंबर मुनि निर्वस्त्र रहकर साधना करते हैं। यह नियम केवल मुनियों पर लागू होता है।
दिगंबर संप्रदाय मानता है कि मूल आगम ग्रंथ लुप्त हो चुके हैं, कैवल्य ज्ञान प्राप्त होने पर सिद्ध को भोजन की आवश्यकता नहीं रहती और स्त्री शरीर से कैवल्य ज्ञान संभव नहीं; किंतु श्वेतांबर संप्रदाय ऐसा नहीं मानते हैं।
दिगंबरों की तीन शाखा हैं मंदिरमार्गी, मूर्तिपूजक और तेरापंथी, और श्वेतांबरों की मंदिरमार्गी तथा स्थानकवासी दो शाखाएं हैं।
दिगंबर संप्रदाय के मुनि वस्त्र नहीं पहनते। 'दिग्‌' माने दिशा। दिशा ही अंबर है, जिसका वह 'दिगंबर'। वेदों में भी इन्हें 'वातरशना' कहा है। जबकि श्वेतांबर संप्रदाय के मुनि सफेद वस्त्र धारण करते हैं। कोई 300 साल पहले श्वेतांबरों में ही एक शाखा और निकली 'स्थानकवासी'। ये लोग मूर्तियों को नहीं पूजते।
जैनियों की तेरहपंथी, बीसपंथी, तारणपंथी, यापनीय आदि कुछ और भी उपशाखाएं हैं। जैन धर्म की सभी शाखाओं में थोड़ा-बहुत मतभेद होने के बावजूद भगवान महावीर तथा अहिंसा, संयम और अनेकांतवाद में सबका समान विश्वास है।
गुप्त काल : ईसा की पहली शताब्दी में कलिंग के राजा खारावेल ने जैन धर्म स्वीकार किया। ईसा के प्रारंभिक काल में उत्तर भारत में मथुरा और दक्षिण भारत में मैसूर जैन धर्म के बहुत बड़े केंद्र थे।
पांचवीं से बारहवीं शताब्दी तक दक्षिण के गंग, कदम्बु, चालुक्य और राष्ट्रकूट राजवंशों ने जैन धर्म के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण योगदान दिया। इन राजाओं के यहां अनेक जैन मुनियों, कवियों को आश्रय एवं सहायता प्राप्त होती थी।
ग्याहरवीं सदी के आसपास चालुक्य वंश के राजा सिद्धराज और उनके पुत्र कुमारपाल ने जैन धर्म को राजधर्म घोषित कर दिया तथा गुजरात में उसका व्यापक प्रचार-प्रसार किया गया।
मुगल काल : मुगल शासन काल में हिन्दू, जैन और बौद्ध मंदिरों को आक्रमणकारी मुस्लिमों ने निशाना बनाकर लगभग 70 फीसदी मंदिरों का नामोनिशान मिटा दिया। दहशत के माहौल में धीरे-धीरे जैनियों के मठ टूटने एवं बिखरने लगे लेकिन फिर भी जै‍न धर्म को समाज के लोगों ने संगठित होकर बचाए रखा। जैन धर्म के लोगों का भारतीय संस्कृति, सभ्यता और समाज को विकसित करने में बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान रहा है।
जैन धर्म - इतिहास की नजर में
दुनिया के सबसे प्राचीन धर्म जैन धर्म को श्रमणों का धर्म कहा जाता है। वेदों में प्रथम तीर्थंकर ऋषभनाथ का उल्लेख मिलता है। माना जाता है कि वैदिक साहित्य में जिन यतियों और व्रात्यों का उल्लेख मिलता है वे ब्राह्मण परंपरा के न होकर श्रमण परंपरा के ही थे। मनुस्मृति में लिच्छवि, नाथ, मल्ल आदि क्षत्रियों को व्रात्यों में गिना है।
जैन धर्म का मूल भारत की प्राचीन परंपराओं में रहा है। आर्यों के काल में ऋषभदेव और अरिष्टनेमि को लेकर जैन धर्म की परंपरा का वर्णन भी मिलता है। महाभारतकाल में इस धर्म के प्रमुख नेमिनाथ थे।
जैन धर्म के 22वें तीर्थंकर अरिष्ट नेमिनाथ भगवान कृष्ण के चचेरे भाई थे। जैन धर्म ने कृष्ण को उनके त्रैसष्ठ शलाका पुरुषों में शामिल किया है, जो बारह नारायणों में से एक है। ऐसी मान्यता है कि अगली चौबीसी में कृष्ण जैनियों के प्रथम तीर्थंकर होंगे।
ईपू आठवीं सदी में 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ हुए, जिनका जन्म काशी में हुआ था। काशी के पास ही 11वें तीर्थंकर श्रेयांसनाथ का जन्म भी हुआ था। इन्हीं के नाम पर सारनाथ का नाम प्रचलित है।
भगवान पार्श्वनाथ तक यह परंपरा कभी संगठित रूप में अस्तित्व में नहीं आई। पार्श्वनाथ से पार्श्वनाथ संप्रदाय की शुरुआत हुई और इस परंपरा को एक संगठित रूप मिला। भगवान महावीर पार्श्वनाथ संप्रदाय से ही थे।
जैन धर्म में श्रमण संप्रदाय का पहला संप्रदाय पार्श्वनाथ ने ही खड़ा किया था। ये श्रमण वैदिक परंपरा के विरुद्ध थे। यही से जैन धर्म ने अपना अगल अस्तित्व गढ़ना शुरू कर दिया था। महावीर तथा बुद्ध के काल में ये श्रमण कुछ बौद्ध तथा कुछ जैन हो गए। इन दोनों ने अलग-अलग अपनी शाखाएं बना ली।
ईपू 599 में अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर ने तीर्थंकरों के धर्म और परंपरा को सुव्यवस्थित रूप दिया। कैवल्य का राजपथ निर्मित किया। संघ-व्यवस्था का निर्माण किया:- मुनि, आर्यिका, श्रावक और श्राविका। यही उनका चतुर्विघ संघ कहलाया। भगवान महावीर ने 72 वर्ष की आयु में देह त्याग किया।
भगवान महावीर के काल में ही विदेहियों और श्रमणों की इस परंपरा का नाम जिन (जैन) पड़ा, अर्थात जो अपनी इंद्रियों को जीत लें।
धर्म पर मतभेद : अशोक के अभिलेखों से यह पता चलता है कि उनके समय में मगध में जैन धर्म का प्रचार था। लगभग इसी समय, मठों में बसने वाले जैन मुनियों में यह मतभेद शुरू हुआ कि तीर्थंकरों की मूर्तियां कपड़े पहनाकर रखी जाए या नग्न अवस्था में। इस बात पर भी मतभेद था कि जैन मुनियों को वस्त्र पहनना चाहिए या नहीं।
आगे चलकर यह मतभेद और भी बढ़ गया। ईसा की पहली सदी में आकर जैन धर्म को मानने वाले मुनि दो दलों में बंट गए। एक दल श्वेतांबर कहलाया, जिनके साधु सफेद वस्त्र (कपड़े) पहनते थे, और दूसरा दल दिगंबर कहलाया जिसके साधु नग्न (बिना कपड़े के) ही रहते थे।
श्वेतांबर और दिगंबर का परिचय : भगवान महावीर ने जैन धर्म की धारा को व्यवस्थित करने का कार्य किया, लेकिन उनके बाद जैन धर्म मूलत: दो संप्रदायों में विभक्त हो गया: श्वेतांबर और दिगंबर।
दोनों संप्रदायों में मतभेद दार्शनिक सिद्धांतों से ज्यादा चरित्र को लेकर है। दिगंबर आचरण पालन में अधिक कठोर हैं जबकि श्वेतांबर कुछ उदार हैं। श्वेतांबर संप्रदाय के मुनि श्वेत वस्त्र पहनते हैं जबकि दिगंबर मुनि निर्वस्त्र रहकर साधना करते हैं। यह नियम केवल मुनियों पर लागू होता है।
दिगंबर संप्रदाय मानता है कि मूल आगम ग्रंथ लुप्त हो चुके हैं, कैवल्य ज्ञान प्राप्त होने पर सिद्ध को भोजन की आवश्यकता नहीं रहती और स्त्री शरीर से कैवल्य ज्ञान संभव नहीं; किंतु श्वेतांबर संप्रदाय ऐसा नहीं मानते हैं।
दिगंबरों की तीन शाखा हैं मंदिरमार्गी, मूर्तिपूजक और तेरापंथी, और श्वेतांबरों की मंदिरमार्गी तथा स्थानकवासी दो शाखाएं हैं।
दिगंबर संप्रदाय के मुनि वस्त्र नहीं पहनते। 'दिग्‌' माने दिशा। दिशा ही अंबर है, जिसका वह 'दिगंबर'। वेदों में भी इन्हें 'वातरशना' कहा है। जबकि श्वेतांबर संप्रदाय के मुनि सफेद वस्त्र धारण करते हैं। कोई 300 साल पहले श्वेतांबरों में ही एक शाखा और निकली 'स्थानकवासी'। ये लोग मूर्तियों को नहीं पूजते।
जैनियों की तेरहपंथी, बीसपंथी, तारणपंथी, यापनीय आदि कुछ और भी उपशाखाएं हैं। जैन धर्म की सभी शाखाओं में थोड़ा-बहुत मतभेद होने के बावजूद भगवान महावीर तथा अहिंसा, संयम और अनेकांतवाद में सबका समान विश्वास है।
गुप्त काल : ईसा की पहली शताब्दी में कलिंग के राजा खारावेल ने जैन धर्म स्वीकार किया। ईसा के प्रारंभिक काल में उत्तर भारत में मथुरा और दक्षिण भारत में मैसूर जैन धर्म के बहुत बड़े केंद्र थे।
पांचवीं से बारहवीं शताब्दी तक दक्षिण के गंग, कदम्बु, चालुक्य और राष्ट्रकूट राजवंशों ने जैन धर्म के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण योगदान दिया। इन राजाओं के यहां अनेक जैन मुनियों, कवियों को आश्रय एवं सहायता प्राप्त होती थी।
ग्याहरवीं सदी के आसपास चालुक्य वंश के राजा सिद्धराज और उनके पुत्र कुमारपाल ने जैन धर्म को राजधर्म घोषित कर दिया तथा गुजरात में उसका व्यापक प्रचार-प्रसार किया गया।
मुगल काल : मुगल शासन काल में हिन्दू, जैन और बौद्ध मंदिरों को आक्रमणकारी मुस्लिमों ने निशाना बनाकर लगभग 70 फीसदी मंदिरों का नामोनिशान मिटा दिया। दहशत के माहौल में धीरे-धीरे जैनियों के मठ टूटने एवं बिखरने लगे लेकिन फिर भी जै‍न धर्म को समाज के लोगों ने संगठित होकर बचाए रखा। जैन धर्म के लोगों का भारतीय संस्कृति, सभ्यता और समाज को विकसित करने में बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान रहा है।

कुबेरनाथ राय   (1933 — 1996) कृतियाँ प्रिया नीलकंठी   ( 1969 ) प्रथम निबंध संग्रह  रस आखेटक   ( 1971  ) गंधमादन   ( 1972 ) वि...