रविवार, 15 अप्रैल 2018



कृतियाँ
  • प्रिया नीलकंठी (1969) प्रथम निबंध संग्रह 
  • रस आखेटक (1971 )
  • गंधमादन (1972)
  • विषाद योग (1973)
  • निषाद बाँसुरी (1974)
  • पर्ण मुकुट (1978)
  • महाकवि की तर्जनी (1979)
  • पत्र मणिपुतुल के नाम (1980)
  • मनपवन की नौका (1982)
  • किरात नदी में चंद्रमधु (1983)
  • दृष्टि अभिसार (1984)
  • त्रेता का वृहत्साम (1986)
  • कामधेनु (1990)
  • मराल (1993)
  • उत्तरकुरु (1994)
  • चिन्मय भारत : आर्ष चिंतन के बुनियादी सूत्र (1996)
  • वाणी का क्षीरसागर (1998)
  • अंधकार में अग्निशिखा (1998)
  • रामायण महातीर्थम् ( 2002)  
  • अगम की नाव (2008)

काव्य-संग्रह

·         कंथामणि (1998)

अन्य रचनाएँ 

·         पुनर्जागरण का अंतिम शलाका पुरुष : स्वामी सहजानंद सरस्वती
·         कुबेरनाथ राय का पहला ललित निबन्ध हेमन्त की संध्या  धर्मयुग के 15 मार्च 1964 के अंक में छपा। यह उनकी पहली कृति प्रिया नीलकंठी का पहला निबन्ध है। इसी निबन्ध-संग्रह में उनका एक निबन्ध संपाती के बेटे भी संग्रहीत है।

सम्मान व पुरस्कार


शुक्रवार, 13 अप्रैल 2018

आपातकाल की समूची पृष्ठभूमि को आधार बनाकर लिखे गये प्रमुख उपन्यास-


कटरा बी आर्जू (राही मासूम रज़ा 78), शांतिभंग (मुद्राराक्षस, 82) समय साक्षी है (हिमांशु जोशी, 82), प्रजाराम (यादवेन्द्र शर्मा, 83), रात का रिपोर्टर (निर्मल वर्मा, 89), जवाहरनगर (रवीन्द्र वर्मा, 95), पहर ढलते (मंजूर एहतेशाम, 2000), जंगल तंत्रम (श्रवण कुमार गोस्वामी, 79), आपातनामा (मनोहरपुरी, 2014), अधबुनी रस्सी (सच्चिदानन्द चतुर्वेदी, 2009), छठा तंत्र (बदीउज्जमा) सत्यमेव जयते (श्री गोपाल व्यास, 2012) आदि हैं। आपातकाल एक ऐसी घटना थी जिसने लोकतंत्र के माथे पर कलंक लगा दिया था और इससे पूरी जनता प्रभावित हुई थी।

शनिवार, 11 नवंबर 2017


केदारनाथ अग्रवाल 
          जनवादी काव्य-सर्जक
कवि चेतन सृष्टि के कर्ता हैं । हम कवि लोग ब्रह्मा हैं ।
कवि को महाकाल मान नहीं सकता । मैं उसी की लड़ाई लड़ रहा हूँ । - केदारनाथ अग्रवाल

 जन्म-1 अप्रैल, 1911 -
मृत्यु- 22 जून, 2000 को हुई।
काव्य-यात्रा का आरंभ लगभग 1930 से माना जा सकता है ।
अशोक त्रिपाठी जी ने उन्हें “केवल भाववादी रूझान की कविताएँ” माना है ।
पहला काव्य-संग्रह- 'युग की गंगा' देश की आज़ादी के पहले मार्च, 1947 में प्रकाशित हुआ। हिंदी साहित्य के इतिहास को समझने के लिए यह संग्रह एक बहुमूल्य दस्तावेज़ है।
केदार जी की प्रकाशित कृतियों की सूची
काव्य-संग्रह – युग की गंगा (1947), नींद के बादल (1947), लोक और आलोक (1957), फूल नहीं रंग बोलते हैं (1965), आग का आईना (1970), गुलमेहंदी (1978), आधुनिक कवि-16 (1978) पंख और पतवार (1980), हे मेरी तुमा (1981), मार प्यार की थापें (1981), बंबई का रक्त-स्नान (1981), कहें केदार खरी-खरी (1983 – सं.-अशोक त्रिपाठी), आत्म-गंध (1988), अनहारी हरियाली (1990), खुली आँखें खुले डैने (1993), पुष्प दीप (1994), वसंत में प्रसन्न हुई पृथ्वी (1966 – सं. – अशोक त्रिपाठी), कुहकी कोयल खड़े पेड़ की देह (1997 - सं. – अशोक त्रिपाठी), प्रतिनिधि कविताएँ (2010 – सं. – अशोक त्रिपाठी)
अनुवाद – देश-देश की कविताएँ (1970),
उपन्यास – पदिया (1985), यात्रा-वृत्तांत – बिस्ती खिले गुलाबों की (रूस की यात्रा का वृत्तांत – 1975), पत्र-साहित्य – मित्र-संवाद (1991 – सं.- रामविलास शर्मा, अशोक त्रिपाठी) साक्षात्कार – मेरे साक्षात्कार (2009 - सं.- नरेंद्र पुंडरीक)
सम्मान
सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार, साहित्य अकादमी पुरस्कार, हिंदी संस्थान पुरस्कार, तुलसी पुरस्कार, मैथिलीशरण गुप्त पुरस्कार आदि।


जिंदगी कोवह गढ़ेंगे जो शिलाएँ तोड़ते हैं,
जो भगीरथ नीर की निर्भय शिराएँ मोड़ते हैं ।
यज्ञ को इस शक्ति-श्रम के
श्रेष्ठतम मैं मानता हूँ ।”      (‘जो शिलाएँ तोड़ते हैं ’/9.11.1948 – प्रतिनिधि कविताएँ)
शोषितों-पीड़ितों का पक्ष लेते हुए उन्होंने तमाम वर्गों को समेटा और पूँजीपतियों और महाजनों को आड़े हाथों लिया । अपनी लेखनी से उन्होंने किसान की अनन्य आराधना की है ।
“मैं तो तुमको मान मुहब्बत सब देता हूँ
मैं तुम पर कविता लिखता हूँ
कवियों में तुमको लेकर आगे बढ़ता हूँ
असली भारत पुत्र तुम्हीं हो
असली भारत पुत्र तुम्हीं हो
मैं कहता हूँ ।
प्रकृति-सौंदर्य की उपासन
केदारजी प्रकृति-सौंदर्य के विराट एवं विशिष्ट उपासक हैं । प्रकृति के रमणीय भावना-चित्रों की प्रस्तुति में केदारजी बोजोड़ कवि हैं । प्रकृति के साथ सहज भावनात्मक अनुभूतियों को जोड़कर उन्होंने जितनी भी कविताएँ लिखी हैं, उनमें अधिकांश कविताएँ पाठकों में वही भावानुभूती पैदा करने में सक्षम हैं । उनकी कविता ‘बसंती हवा’ का रसास्वदन करने वाले किसी भी पाठक में अंश मात्र भी प्रकृति-प्रेम जागृत नहीं होता है, तो वहाँ केदारजी की असफलता ही मान सकते हैं । सच्चाई में, ऐसा होना संभव ही नहीं है । बसंती हवा के वर्णन में कवि की तन्मयता कविता को बार-बार पढ़कर ही समझी जा सकती है । तो आईए आनंद लेते है उनकी एक कालजयी रचना
हवा हूँ हवा मैं बसंती हवा हूँ
सुनो बात मेरी अनोखी हवा हूँ
बड़ी बावली हूँ
बड़ी मस्तमौला।
नहीं कुछ फ़िकर है
बड़ी ही निडर हूँ
जिधर चाहती हूँ
उधर घूमती हूँ
मुसाफिर अजब हूँ।
न घर बार मेरा
न उद्देश्य मेरा
न इच्छा किसी की
न आशा किसी की
न प्रेमी न दुश्मन
जिधर चाहती हूँ
उधर घूमती हूँ
हवा हूँ हवा मैं
बसंती हवा हूँ।
जहाँ से चली मैं
जहाँ को गई मैं
शहर गाँव बस्ती
नदी खेत पोखर
झुलाती चली मैं
हवा हूँ हवा मैं
बसंती हवा हूँ।
चढ़ी पेड़ महुआ
थपाथप मचाया
गिरी धम्म से फिर
चढ़ी आम ऊपर
उसे भी झकोरा
किया कान में ''कू''
उतर कर भगी मैं
हरे खेत पहुँची
वहाँ गेहुँओं में
लहर खूब मारी।
पहर दो पहर क्या
अनेकों पहर तक
इसी में रही मैं।
खड़ी देख अलसी
मुझे खूब सूझी
हिलाया झुलाया
गिरी पर न अलसी
इसी हार को पा
हिलाई न सरसों
झुलाई न सरसों
हवा हूँ हवा मैं
बसंती हवा हूँ।
मुझे देखते ही
अरहरी लजाई
मनाया बनाया
न मानी न मानी
उसे भी न छोड़ा
पथिक आ रहा था
उसी पर ढकेला
हँसी ज़ोर से मैं
हँसी सब दिशाएँ
हँसे लहलहाते
हरे खेत सारे
हँसी चमचमाती
भरी धूप प्यारी
बसंती हवा में
हँसी सृष्टि सारी।
हवा हूँ हवा मैं
बसंती हवा हूँ।


शुक्रवार, 10 नवंबर 2017


मुक्तिबोध

(13 नवंबर, 1917 – 11 सितंबर, 1964) 
मुक्तिबोध के जीवन और उनकी कविता को लोग अपने अपने मतानुसार विश्लेषित करते हैं.
हरिशंकर परसाई ने मुक्तिबोध को ‘विद्रोही’ कहा
शमशेर बहादुर सिंह ने विलक्षण प्रतिभा’
अशोक वाजपेयी ने ‘कठिन समय के कठिन कवि’
. श्रीकांत वर्मा  ने ‘ब्रह्मराक्षस का शिष्य’
नंदकिशोर नवल 
नें ‘आत्मसंघर्ष का कवि’
देवीशंकर अवस्थी
  का कथन मुक्तिबोध उनके लिए ‘अजनबी नहीं’ 
एक ओर कुछ लोग मुक्तिबोध पर दुरूहता का आरोप लगाते हैं तो दूसरी ओर है


मुक्तिबोध : जीवन और कविता उन्होंने 1935 से ही साहित्य सृजन शुरू कर दिया था. वे अज्ञेय द्वारा संपादित ‘तार सप्तक’ (1941) के पहले कवि थे. मुक्तिबोध के समय पर दृष्टि केंद्रित करने से यह स्पष्ट होता है कि लंदन में 1934 में प्रगतिशील लखक संघ का गठन हुआ. प्रेमचंद ने संगठन का स्वागत किया. लखनऊ में अप्रैल 1936 में प्रेमचंद की अध्यक्षता में प्रगतिशील लेखक संघ का पहला अधिवेशन संपन्न हुआ. यही समय मुक्तिबोध की रचनाधर्मिता का प्रारंभिक समय था. 1935 में उनकी पहली रचनाएँ प्रकाशित हुईं, जिन पर माखनलाल चतुर्वेदी का प्रभाव रहा. इसमें संदेह नहीं कि जीवन के नित नए अनुभव उन्हें निरंतर प्राप्त होते रहे. इसीलिए शायद वे कहते हैं कि-
मेरे जीवन का विराम!/ नित चलता ही रहा है मेरा मनोधाम/ गति में ही उसकी संसृति है./ नित नव जीवन में उन्नति है/ नित नव अनुभव हैं अविश्राम/ मन सदा तृषित संतत सकाम- (जीवन यात्रा)/ मुक्तिबोध रचनावली-1
मुक्तिबोध का काव्य संग्रह ‘चाँद का मुँह टेढ़ा है’(1964)  उनकी मृत्यु के बाद 1964 में प्रकाशित हुआ.

प्रमुख कृतियाँ 
 कामायनी : एक पुनर्विचार,
नई कविता का आत्मसंघर्ष तथा अन्य निबंध,
नए साहित्य का सौंदर्यशास्त्र,
समीक्षा की समस्याएँ,
भूरी-भूरी खाक धूल,
एक साहित्यिक की डायरी,
काठ का सपना,
विपात्र,
सतह से उठता आदमी,
मेरे युवजन मेरे परिजन,
भारत : इतिहास और संस्कृति,
शेष-अशेष,
प्रश्नचिह्न बौखला उठे आदि. उनका समग्र साहित्य रचनावली के छह खंडों में प्रकाशित है.

  • कविता ‘अँधेरे में’ (1964) यह कविता पहली बार हैदराबाद से प्रकाशित पत्रिका ‘कल्पना’ में मुक्तिबोध की मृत्यु के एक महीने के बाद छपी. नामवर सिंह को यह कविता ‘परम अभिव्यक्ति की खोज’ प्रतीत होती है तो रामविलास शर्मा को ‘मुक्तिबोध का आत्मसंघर्ष’
  • 1981 में ‘सतह से उठता आदमी’ को मणि कौल ने फिल्माया. 2004 में मुक्तिबोध के जीवन को ‘ब्रह्मराक्षस का शिष्य’ नामक नाट्य रूप में प्रस्तुत किया गया.
  • मुक्तिबोध को ज़िंदगी के अंतिम क्षण में भी संघर्ष करना पड़ा. मानो संघर्ष ही उनका जीवन है. शायद इसीलिए उन्होंने लिखा - मुझे कदम-कदम पर/ चौराहे मिलते हैं/ बाँहें फैलाए!!/ एक पैर रखता हूँ/ कि सौ राहें फूटतीं,/ व मैं उन सब पर से गुजरना चाहता हूँ;/ बहुत अच्छे लगते हैं/ उनके तजुर्बे और अपने सपने .../ सब अच्छे लगते हैं;/ अजीब-सी अकुलाहट दिल में उभरती है,/ मैं कुछ गहरे में उतरना चाहता हूँ, जाने क्या मिल जाए!! मुझे कदम-कदम पर/ (गजानन माधव मुक्तिबोध : प्रतिनिधि कविताएँ )


शनिवार, 4 नवंबर 2017

महादेवी जी की रचनाएँ :
गद्य रचनाएँ :
अतीत के चलचित्र (सन् 1941), श्रृंखला की कड़ियाँ (सन् 1942), स्मृति की रेखाएँ (सन् 1943), पथ के साथी (सन् 1956), क्षणदा (सन् 1956), साहित्यकार की आस्था तथा अन्य निबंध (1960), संकल्पिता (सन् 1969), मेरा परिवार (सन् 1971), चिन्तन के क्षण (1976)
काव्य रचनाएँ :
नीहार (सन् 1930), रश्मि (सन् 1932), नीरजा (सन् 1935), सांध्यगीत (सन् 1936), दीपशिखा (सन् 1942), हिमालय (सन् 1963), सत्तपर्णा (अनूदित 1966), प्रथम आयाम (सन् 1972), अग्निरेखा (सन् 1990)
संकलन :
यामा (सन् 1936), सन्धिनी (सन् 1964), स्मृतिचित्र (गद्य-संग्रह सन् 1966), महादेवी साहित्य (भाग-1) 1969, महादेवी साहित्य (भाग-2) 1970, महादेवी साहित्य (भाग-3) 1970, गीत पर्व (कविता संग्रह) 1970, स्मारिका (सन् 1971), परिक्रमा (सन् 1974), संभाषण (सन् 1975), मेरे प्रिय निबंध (सन् 1971), आत्मिका (सन् 1973), नीलाम्बरा (सन् 1973),
दीपगीत महादेवी की प्रतिनिधि गद्य-रचनाएँ संकलन भी प्रकाशित किया गया।

सोमवार, 16 जनवरी 2017

14 जनवरी 

६२वां जियो फिल्मफेयर अवार्ड-२०१६

  • ६२वां जियो फिल्मफेयर अवार्ड का वितरण १४ जनवरी, २०१७ को मुंबई नेशनल स्पोर्ट क्लब ऑफ इंडिया में गया।
  • इस समारोह में राम माधवनी द्वारा निर्देशित फिल्म ‘नीरजा’ को सर्वाधिक ६ पुरस्कार प्राप्त हुए।  
  • शकुन बत्रा द्वारा निर्देशित फिल्म ‘कपूर एंड संस’ को पांच श्रेणियों में 
  • नितेश तिवारी निर्देशित फिल्म-‘दंगल’ को चार श्रेणियों में पुरस्कृत किया गया।
पुरस्कार -
  • सर्वश्रेष्ठ फिल्म-दंगल (निर्देशक-नितेश तिवारी)
  • सर्वश्रेष्ठ निर्देशक-नितेश तिवारी (फिल्म-दंगल)
  • सर्वश्रेष्ठ अभिनेता-आमिर खान (दंगल)
  • सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री-आलिया भट्ट (उड़ता पंजाब)
  • सर्वश्रेष्ठ सहअभिनेता-ऋषि कपूर (कपूर एंड संस)
  • सर्वश्रेष्ठ सहअभिनेत्री-शबाना आजमी (नीरजा)
  • सर्वश्रेष्ठ संगीत- प्रीतम (ए दिल है मुश्किल)
  • सर्वश्रेष्ठ गीत- अमिताभ भट्टाचार्य (चन्ना मेरेया, फिल्म-ए दिल है मुश्किल)
  • सर्वश्रेष्ठ पार्श्वगायक-अरिजीत सिंह (ए दिल है मुश्किल, फिल्म-ए दिल है मुश्किल)
  • सर्वश्रेष्ठ पार्श्वगायिका-नेहा भासिन (जग घुमेया, फिल्म-सुल्तान)
  • सर्वश्रेष्ठ एक्शन-शाम कौशल (दंगल)
  • सर्वश्रेष्ठ बैकग्राउंड स्कोर-समीर उदिन (फिल्म-कपूर एंड संस)
  • सर्वश्रेष्ठ नृत्य निर्देशक (कोरियाग्रॉफर)-आदिल शेख (कर गई चुल, फिल्म-कपूर एंड संस)
  • सर्वश्रेष्ठ परिधान-पायल सलुजा (उड़ता पंजाब)
  • सर्वश्रेष्ठ छायांकन-मितेश मीरचंदानी (नीरजा)
  • सर्वश्रेष्ठ संपादन-मोनिषा आर. बाल्दवा (फिल्म-नीरजा)
  • सर्वश्रेष्ठ संवाद-रितेश शाह (पिंक)
  • सर्वश्रेष्ठ पटकथा एवं कहानी- शकुन बत्रा और आयशा देवित्री (कपूर एंड संस)
  • सर्वश्रेष्ठ ध्वनि-योजना- मोनिषा आर बाल्दवा (नीरजा)
  • सर्वश्रेष्ठ नवोदित अभिनेता- दिलजीत (उड़ता पंजाब)
  • सर्वश्रेष्ठ नवोदित अभिनेत्री-रितिका (साला खड़ूस)
  • सर्वश्रेष्ठ नवोदित निर्देशक- अश्विनी अय्यर तिवारी (निल बटे सन्नाटा)
समालोचन श्रेणी के पुरस्कार-
  • सर्वश्रेष्ठ अभिनेता- मनोज वाजपेयी (अलीगढ़) और शाहिद कपूर (उड़ता पंजाब)
  • सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री-सोनम कपूर (नीरजा)
  • सर्वश्रेष्ठ फिल्म- ‘नीरजा’ (निर्देशक-राम माधवानी)
  • फिल्मफेयर लाइफ टाइम अचीवमेंट अवॉर्ड- शत्रुघ्न सिन्हा
  • फिल्मफेयर नई संगीत प्रतिभा का आर.डी.वर्मन अवॉर्ड-अमित मिश्रा (बुलेया, फिल्म-ए दिल है मुश्किल)

कुबेरनाथ राय   (1933 — 1996) कृतियाँ प्रिया नीलकंठी   ( 1969 ) प्रथम निबंध संग्रह  रस आखेटक   ( 1971  ) गंधमादन   ( 1972 ) वि...