शुक्रवार, 29 अप्रैल 2011

सीमित देयता भागीदारी

सीमित देयता भागीदारी
सीमित देयता भागीदारी (एलएलपी) व्यापार संगठन का एक स्वरूप है, जिसमें प्रत्येक भागीदार की देयता कानूनी रूप से सीमित होती है।
यह एक कंपनी को सीमित देयता लाभ प्रदान करता है, साथ ही इसके सदस्यों को आपसी सहमति के करार के आधार पर अपनी आंतरिक प्रबंधन व्यवस्था के आयोजन का लचीलापन प्रदान करता है, चाहे भागीदारी फर्म में जैसा भी मामला हो।
यह एक कॉरपोरेट व्यापार माध्यम है, जो पेशेवर विशेषज्ञता और उद्यमशीलता की पहल को लचीले, अभिनव और कुशल तरीके से संचालित करने के लिए सक्षम बनाता है।
एलएलपी तेजी से छोटे और मध्यम उद्यमों के लिए व्यापार के पसंदीदा माध्यम बन रहे हैं, विशेष रूप से सेवा उद्योग और संगठन में पेशेवरों को शामिल करने के लिए इसे अपनाया जाता है।
* भारत में एलएलपी की आवश्यकता - बाहरी वेबसाइट जो एक नई विंडों में खुलती हैं
* व्यापारी संगठन का स्वरूप
भारत में सीमित देयता भागीदारी
सीमित देयता भागीदारी अधिनियम - पीडीएफ फाइल जो नई विंडों में खुलती है को भारतीय संसद ने 2008 में पारित किया था, जिसे 7 जनवरी, 2009 को राष्ट्रपति की स्वीकृति के बाद अधिनियमित किया गया।
एलएलपी एक अलग कानूनी और सीमित देयता वाली कंपनी के रूप में आसानी से साझेदारी चलाने के लाभ के दृष्टिकोण वाली गठबंधन इकाई है। इसलिए एलएलपी में 'कॉरपोरेट संरचना' के साथ 'भागीदारी व्यवसाय संरचना' दोनों ही तत्व होते हैं, जो कंपनी या एक साझेदारी के बीच मिश्रित होते हैं।
विशेषताएँ
एलएलपी की मुख्य विशेषता यह है कि यह एक पृथक कानूनी इकाई होती है, जो अपनी परिसंपत्तियों की पूरी सीमा तक देयता रखती है और भागीदारों की देयता उनके योगदान की सहमति तक सीमित होती है। किसी भागीदार पर अन्य भागीदारों की स्वतंत्र या अनधिकृत गतिविधियों या दुराचार की देयता नहीं होगी, इस प्रकार व्यक्तिगत तौर पर भागीदार संयुक्त देयता से परिरक्षित हैं, जबकि एलएलपी में भागीदारों के आपसी अधिकार और कर्तव्य का नियंत्रण भागीदारों के बीच किए गए करार या एलएलपी तथा भागीदारों के बीच किए गए करार द्वारा नियंत्रित होगा।
एलएलपी पेशेवर/तकनीकी विशेषज्ञता को जागृत और अभिनव व कुशल तरीके से वित्तीय जोखिम उठाने की क्षमता को जोड़ने की पहल करती है।
आवश्यकताएं
एलएलपी के गठन के लिए सबसे महत्वपूर्ण आवश्यकता यह है कि इसके लिए न्यूनतम दो भागीदारों की जरूरत होती है, हालांकि भागीदारों की अधिकतम संख्या की कोई सीमा नहीं है। इसके अतिरिक्त एक कॉरपोरेट संस्था एलएलपी में भागीदार हो सकती है।
आपसी अधिकार और कर्तव्य के मामले में एलएलपी और इसके सभी भागीदार समझौते से नियंत्रित होते हैं, यह समझौता भागीदारों के बीच या एलएलपी और भागीदारों के बीच होता है, जिसे 'एलएलपी समझौता' के रूप में जाना जाता है। किसी भी मामले में समझौते के अभाव में आपसी अधिकारों और देयताओं को एलएलपी अधिनियम की अनुसूची-I के अधीन प्रदान किया जाएगा।
लेखा परीक्षा, नत्थीकरण (फिलिंग) और अन्य आवश्यकताएँ
एलएलपी को अपने कार्यों की स्थिति में वार्षिक लेखा विवरण को अनुरक्षित करने की बाध्यता होगी, जिसमें सत्य और निष्पक्ष चित्र दर्शाया जाए। लेखा और शोधन क्षमता का विवरण एक निर्धारित प्रपत्र में प्रत्येक वर्ष प्रत्येक एलएलपी द्वारा रजिस्ट्रार के पास जमा कराया जाएगा। प्रत्येक एलएलपी को प्रपत्र 11 में वार्षिक विवरणी वित्त वर्ष के अंत से पहले 60 दिन के भीतर कंपनी रजिस्ट्रार के पास जमा कराना आवश्यक है। यह वार्षिक विवरणी रजिस्ट्रार को विहित शुल्क का भुगतान करने पर जनता के निरीक्षण के लिए उपलब्ध होती है। केंद्र सरकार को किसी एलएलपी के मामले की जांच के लिए निरीक्षक नियुक्त करने का अधिकार है।
एलएलपी के गठन की प्रक्रिया
एक सीमित देयता भागीदारी ऑनलाइन निगमित की जा सकती है।
ऑनलाइन पंजीकरण
कारपोरेट कार्य मंत्रालय - बाहरी वेबसाइट जो एक नई विंडों में खुलती हैं द्वारा एलएलपी सेवाओं के लिए विकसित की गई
एलएलपी के नाम का आरक्षण
एक एलएलपी के नाम को आरक्षित करने के लिए कोई भागीदार या नामनिर्दिष्ट भागीदार प्रस्तावित एलएलपी के लिए प्रपत्र क्रमांक 1 जिसमें छह विकल्पों तक नाम दिए जा सकते हैं, भरकर जमा कर सकता है।
मौजूदा कंपनियों/एलएलपी नाम खोज सुविधा का मुक्त रूप से उपयोग करने के लिए यहाँ क्लिक करें - बाहरी वेबसाइट जो एक नई विंडों में खुलती हैं।
एलएलपी का निगमीकरण
एक बार रजिस्ट्रार द्वारा नाम आरक्षित किए जाने के बाद रजिस्ट्रार द्वारा निर्धारित ई-प्रपत्र में दिए गए वक्तव्य पर नामनिर्दिष्ट व्यक्ति द्वारा डिजिटल हस्ताक्षर कर आवश्यक दस्तावेज संलग्न करने के साथ एलएलपी नियम 2009 - पीडीएफ फाइल जो नई विंडों में खुलती है के अनुलग्नक-अ के तहत प्रस्तावित एलएलपी के भागीदारों को अनुबंध के आधार पर निर्धारित मौद्रिक मूल्य का योगदान पंजीकरण शुल्क के भुगतान के रूप में करना होता है।
एलएलपी अनुबंध और भागीदारों की विस्तृत जानकारी भरना
प्रपत्र 3 (यदि एलएलपी अनुबंध में किसी तरह का कोई परिवर्तन किया गया है तो) और प्रपत्र 4 (भागीदार/नामनिर्दिष्ट भागीदार की नियुक्ति आदि की सूचना) निर्धारित शुल्क के साथ प्रपत्र 2 भरते समय या फिर निगमीकरण की तरीख के 30 दिनों के भीतर या फिर इस तरह के परिवर्तनों के 30 दिनों के बाद भरा जा सकता है।
* एलएलपी पर ऑनलाइन शिक्षण - बाहरी वेबसाइट जो एक नई विंडों में खुलती हैं
* एलएलपी के संबंध में अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न - बाहरी वेबसाइट जो एक नई विंडों में खुलती हैं
* एलएलपी पंजीकरण शुल्क का विवरण - पीडीएफ फाइल जो नई विंडों में खुलती है
एलएलपी का कराधान
एलएलपी का कराधान
चूंकि भारत में कराधान से संबंधित मामले कर कानून के तहत आते हैं, इसलिए एलएलपी के कराधान का प्रावधान एलएलपी अधिनियम में नहीं किया गया है। वित्त विधेयक, 2009 इस संबंध में प्रावधान करता है, जिसके आधार पर एलएलपी के कराधान की योजना आयकर अधिनियम में प्रस्तुत की गई है।
अन्य संस्थाओं का एलएलपी में रूपांतरण
अन्य व्यापारिक संस्थाएं जैसे कि फर्म या कंपनी स्वयं को एलएलपी में रूपांतरित कर सकती हैं। एलएलपी अधिनियम 2008 के प्रावधानों के तहत एक फर्म (भारतीय भागीदारी अधिनियम, 1932 - बाहरी वेबसाइट जो एक नई विंडों में खुलती हैं के अधीन स्थापित) और निजी कंपनी या एक गैर सूचीबद्ध सार्वजनिक कंपनी (कंपनी अधिनियम के अंतर्गत निगमित) को एलएलपी में परिवर्तित होने की अनुमति है।
परंतु, एलएलपी अधिनियम, एक एलएलपी स्वयं को एक कंपनी में रूपांतरित करने से रोकता है, जबकि कंपनी अधिनियम, 1956 - बाहरी वेबसाइट जो एक नई विंडों में खुलती हैं के प्रावधान इस बात की इजाजत देते हैं।
एलएलपी का विलय और वाइन्डिंग
एलएलपी का विलय और वाइन्डिंग
एलएलपी अधिनियम की धारा 60 से 62 तक में दिए गए प्रावधान इस व्यवस्था की अनुमति प्रदान करते हैं कि किस तरह से एलएलपी के समझौते या विलय और एकीकरण किया जाएगा।
ये धाराएं एलएलपी के विलय और उसके भंग होने और वाइंडिंग के मामले में भी आवश्यक प्रक्रिया और प्रावधान प्रदान करती हैं।
अपराध और जुर्माना
एलएलपी अधिनियम के प्रावधानों का पालन न करने पर अपराध और जुर्माने को मूल प्रावधानों के साथ ही उल्लेखित कर परिभाषित किया गया है। हालांकि, चूक होने/किन्हीं मामलों में तय समय सीमा में आवश्यकताओं की पूर्ति न करने व निर्धारित प्रक्रिया का पालन न करने पर इस संबंध में आवेदन किए जाने पर गैर विवेकाधीन ढंग से जुर्माना लगाए जाने का प्रावधान किया गया है। यह चूक जितने दिन तक जारी रहेगी प्रतिदिन के हिसाब से चूक के लिए शुल्क लगाया जाएगा।
यह अधिनियम केंद्र सरकार को ऐसे सशक्त प्रावधान प्रदान करता है, जिसके तहत वह अपराध के लिए जुर्माने के साथ कारावास को संयोजित कर सकती है, यदि एकत्र की गई जुर्माना राशि अपराध के लिए तयशुदा जुर्माना राशि की पूर्ति नहीं करती है।
हालांकि अधिनियम में अधिकांश अपराधों के लिए जुर्माने के द्वारा दंड दिए जाने का प्रावधान है, लेकिन नाफरमानी या उल्लंघन के मामले में कारावास का प्रावधान भी प्रदान किया गया है।
इस अधिनियम में ऐसे अपराधों का भांडा फोड़ने वालों को सुरक्षा प्रदान करने के प्रावधान भी किए गए हैं।

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